भारत का सफेद सोना: कपास की विरासत और महत्व

कपास को भारत में 'सफेद सोना' कहा जाता है। इसका इतिहास 3000 ईसा पूर्व से जुड़ा है। उस समय से ही यह व्यापार और वस्त्र निर्माण का मुख्य आधार रहा है।

कपास भारत की प्रमुख नकदी फसलों में से एक है। यह न केवल कृषि क्षेत्र में बल्कि औद्योगिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण है।

आर्थिक महत्व

कपास का उत्पादन भारत में 3000 ईसा पूर्व से शुरू हुआ, जहाँ इसका यूरोप और एशिया के साथ व्यापार किया जाता था।

ऐतिहासिक महत्व

कपास की खेती भारत में 60 लाख किसानों को सीधा रोजगार देती है। इसके अलावा 4 से 5 करोड़ लोग इसकी प्रोसेसिंग और व्यापार से जुड़े हैं।

प्रमुख रोजगार स्रोत

भारत आज दुनिया में कपास उत्पादन में सबसे आगे है। यह वैश्विक उत्पादन का 25% हिस्सा देता है। और कुल खेती वाले कृषि क्षेत्र के 38% हिस्से में होती है।

वैश्विक नेता

विश्व के लगभग 75% कपड़े कपास से तैयार होते हैं। यह शुद्ध जैविक कपास से लेकर मिश्रित धागों तक में उपयोग होता है।

कपास की बहुउपयोगिता

कपास के कपड़े बेहद टिकाऊ, पानी सोखने वाले और गीले होने पर 30% अधिक मजबूत होते हैं, जिससे वे लंबे समय तक टिके रहते हैं।

टिकाऊपन

कपास को सफेद सोना इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह अपनी सफेदी और चमक को बनाए रखता है।

चमकदार और शुद्ध

कपास का कपड़ा बेहद मुलायम और त्वचा के अनुकूल होता है। यह गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्माहट देता है।

मुलायम और आरामदायक

कपास एक प्राकृतिक वस्त्र है, जिससे एलर्जी की संभावना बहुत कम हो जाती है। यह संवेदनशील त्वचा के लिए भी उपयुक्त है।

हाइपोएलर्जेनिक