भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है। देश में इसकी खेती 1.7 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में की जाती है। भारत विश्व में 159 से अधिक देशों को कपास निर्यात करता है। भारत कपास की 55 लाख गांठ से अधिक का निर्यात करता है। सत्र 2022-2023 के लिए कपास की कुल वार्षिक राष्ट्रीय मांग 351 लाख गांठ की है। कपास की खेती मुख्यतः गुजरात, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में की जाती है। भारत में कपास का सर्वाधिक उत्पादक राज्य गुजरात है।
मध्यम
भारत में कपास की 150 से अधिक किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें से कुछ लोकप्रिय किस्में रासी 773, रासी 776, अंकुर 555, बायर 7172, बायर 7272, यूएस 51, नुजिवीडू 9013, नुजिवीडू बलवान, श्रीराम 6588, कावेरी बुलेट, गोल्डी 333, बुरी 1007, ए.के.एच. 081 और डी.एच.वाई. 286 हैं। कपास की रासी 773 किस्म पौधे की इष्टतम ऊंचाई के साथ बड़े आकार के टिंडे / डेंडू / डोडे का उत्पादन करती है। यह किस्म रस चूसक कीटों के प्रति सहनशील भी है।
कपास की देशी किस्मों को न्यूनतम दो से तीन घंटे और आयातित किस्मों जैसे यूएस किस्मों को चार से छह घंटे तक भिगोने की आवश्यकता होती है।
कपास के बीजों को उपचार से पहले, पौधों की एक समान बढ़वार के लिए बीजों को पानी, मिट्टी और गाय के गोबर के मिश्रण में भिगोयें।
डिलेंटिंग (बीज से रेशे अलग करना) एक आवश्यक कपास बीज उपचार है। डिलेंट करने के लिए, एक प्लास्टिक की बाल्टी में 1 किलो रेशे वाले बीज लें, और 100 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से कंसंट्रेट सल्फ्यूरिक अम्ल डालें। एक समान मिश्रण और बेहतर उपचार के लिए 2 – 3 मिनट तक लकड़ी की चम्मच से लगातार हिलाते रहें। लगभग 3 मिनट में बीज कॉफी ब्राउन रंग में दिखाई देने लगेंगे, फिर बीजों को तुरंत ठंडे पानी से लगभग 4-5 बार धो लें। सभी बीजों को धोने के बाद गंदगी को हटाने के लिए बीजों को पानी में भिगोने की आवश्यकता होती है। फिर बीजों से अम्ल को पूरी तरह से हटाने के लिए बीजों को 0.5% कैल्शियम क्लोराइड के घोल से 10-15 मिनट के लिए धो लें। जो बीज नीचे तक डूब जाते हैं उनका उपयोग बुवाई के लिए किया जा सकता है।
बीज जनित रोगों से बचाव के लिए 2 ग्राम कार्बोनाइज्ड या 3 ग्राम मैंकोजेब को 1 लीटर पानी में घोलें और बीजों को उपचारित करें। घोल (स्लरी) उपचार में बीजों को कैप्टान 2 ग्राम एवं पानी 5 मिली प्रति किलो डिलिंटेड बीजों के हिसाब से घोल बनाकर बीजों को भिगोये l
कपास के बीजों को उपचारित करने के कई विकल्प है। एजोटोबैक्टर एवं अन्य आवश्यक जीवाणु उपभेद 34 से 247 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने के साथ बीज उपचार में भी मदद करता है l एजोटोबैक्टर की तरह, एजोस्पिरिलम भी माइक्रो एरोफिलिक नाइट्रोजन फिक्सर है। एजोस्पाइरिलम नाइट्रोजन की आवश्यकता को 25 – 30% तक कम कर सकता है।
बलुई दोमट
थोड़ा अम्लीय
खेत को विपरीत दिशाओं में दो बार हैरो से जुताई कर डिस्क- हैरो का उपयोग किया जाता है जिससे मिट्टी ढीली हो जाती है। हैरो के बाद भूमि को छेनी हल से 0.5 मीटर के अंतराल पर मिट्टी की जुताई करें।
कपास के लिए भूमि की तैयारी आमतौर पर रेतीली चिकनी दोमट मिट्टी में 10 टन एफ वाई एम मिलाकर की जाती है। एजोस्पिरिलम के 3 पैकेट (600 ग्राम/हेक्टेयर) और फास्फो बैक्टीरिया के 3 पैकेट (600 ग्राम/हेक्टेयर) या एज़ोफॉस के 6 पैकेट (1200 ग्राम/हेक्टेयर) के साथ बीजों में मिलाएं। इस तरह कपास के पौधों में भरपूर मात्रा में सुलभ नाइट्रोजन होगी।
कपास एक मजबूत फसल है, जिसकी खेती पूरे देश में की जाती है l कपास एक प्रमुख नकदी फसल है जिसने वर्ष 2022 – 23 के लिए स्वस्थ प्रति फल का वादा किया है। हालांकि कपास को उचित देखभाल की आवश्यकता होती है, पर यह अन्य नकदी फसलों की तरह उच्च रखरखाव रखने वाली फसल नहीं है।
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