Crop

गेहूं: रोपण एवं खेती की समग्र सिफारिशें

गेहूं विश्व में व्यापक रूप से उपभोग की जाने वाली प्रमुख खाद्य फसलों में से एक है। यह ठंडे मौसम की फसल है तथा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसे सर्दी के मौसम में पसंद किया जाता है। क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से गेहूं सभी खाद्यान्नों में प्रथम स्थान पर है, जबकि देश में यह चावल के बाद दूसरी महत्वपूर्ण खाद्य फसल है।

गेहूं की फसल पर एक नजर:

  • वानस्पतिक नाम: ट्रिटिकम एस्टीवम एल.
  • सामान्य नाम: गेहूं (हिंदी), कनक (पंजाबी), कोटुमाई (तमिल), गोथंबू (मलयालम), गोधुमा (तेलुगु)।
  • मौसम: रबी मौसम में
  • फसल प्रकार: फील्ड फसल / क्षेत्रीय फसल

आवश्यक मृदा:

सामान्य तौर पर, गेहूं की खेती अनेक प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, परन्तु मध्यम से भारी मृदा गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। उचित जल निकास वाली दोमट एवं चिकनी दोमट मिट्टी गेहूं की खेती के लिए सबसे आदर्श मानी जाती है।

आवश्यक जलवायु:

गेहूं की फसल शुष्क एवं ठंडी पर्यावरणीय परिस्थितियों में अच्छी तरह से उगती है, जिसके कारण इसे सर्दी के मौसम की फसल कहा जाता है। गेहूं की सर्वोत्तम वृद्धि के लिए तापमान 16 से 21.1˚C और वार्षिक वर्षा 750 से 1000 मिमी के बीच उपयुक्त रहती है।

गेहूं की खेती के लिए समग्र सिफारिशें:

भूमि की तैयारी:

गेहूं की फसल बुवाई के लिए साफ,अच्छी तरह से भुरभुरी, महीन और उपयुक्त नमी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। यदि जुताई के लिए खेत में आवश्यक नमी से कम नमी है, तो बुआई से पहले सिंचाई करना अति आवश्यक है। सिंचित पारिस्थितिकी में काम करते समय पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए और बाद में तीन-चार जुताई करके पाटा लगाना चाहिए। वर्षा आधारित क्षेत्रों में, मानसून के दौरान प्रत्येक वर्षा के बाद डिस्क हैरोइंग से जुताई की जानी चाहिए और मिट्टी के ढेले के विकास और नमी की हानि को रोकने के लिए प्रत्येक हैरोइंग के बाद हमेशा प्लैंकिंग करनी चाहिए।

बुआई का समय:

गेहूं की बुआई का उपयुक्त समय नवंबर के पहले पखवाड़े से दिसंबर के पहले पखवाड़े के मध्य रहता है।

बीज दर एवं दूरी:

आम तौर पर, गेहूं के बीज की बुवाई 22.5 सेमी × 10 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में की जाना चाहिए और इष्टतम बीज दर 100 से 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। यदि देर से बुआई की जाए तो 125 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर की सिफारिश की जाती है। पौधों की आदर्श संख्या को बनाए रखने के लिए 20 से 25 दिन तक विरलन की आवश्यकता होती है।

बीज उपचार:

शूट फ्लाई के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कॉन्फिडोर सुपर (इमिडाक्लोप्रिड 30.5% एस एल) 0.3 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम गेहूं के बीज की दर से बीज उपचार किया जाता है l गेहूं की लूज स्मट बीमारी को रोकने के लिए वीटावैक्स पावर (कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% डी एस) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के साथ 6 घंटे के लिए बीज उपचार की सिफारिश की जाती है।

सिंचाई:

गेहूं की फसल को 300 से 400 मिमी सिंचाई जल की आवश्यकता होती है। क्रांतिक समय में, फसल पानी के तनाव के प्रति बेहद संवेदनशील होती है। गेहूं की फसल में सिंचाई के लिए सबसे क्रांतिक अवस्था क्राउन रूट इनिशिएटिव,ज्वाइंटिंग, हेडिंग और डफ अवस्था है।

खाद एवं उर्वरक:

फसल में आवश्यकता से अधिक उर्वरक के प्रयोग से बचने और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए, उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के परिणामों के आधार पर किया जाना चाहिए। सिंचित वातावरण में 120:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के प्रयोग की सिफारिश की जाती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बेसल खुराक के रूप में और शेष आधी मात्रा बुआई के 30 से 45 दिन बाद पहली सिंचाई के दौरान प्रयोग की जाती है।

इंटर कल्टीवेशन प्रैक्टिस:

फसल में बेहतर खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल बुवाई के 30 वें दिन एवं 45 वें दिन पर दो बार हाथ से निराई-गुड़ाई करने की सलाह दी जाती है। मजदूरों की कमी वाली स्थिति में, प्री इमर्जेंट हर्बीसाइड स्टाम्प एक्स्ट्रा (पेंडीमेथालिन 38.7% सीएस) का 600 मिलीलीटर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए और पोस्ट इमर्जेंट में टोटल (सल्फोसल्फ्यूरॉन 75% + मेटसल्फ्युरॉन 5% डब्लू जी) का प्रयोग बुवाई के बाद 30 से 35 दिन के दौरान में 16 ग्राम प्रति एकड़ की दर से किया जाना चाहिए। खरपतवारों के प्रभावी नियंत्रण के लिए इनका उचित प्रकार से उपयोग किया जाना चाहिए l 

फसल संरक्षण (कीट एवं रोग):

कीट:

कीट वैज्ञानिक नाम लक्षण प्रबंधन
गेहूं का एफिड मैक्रोसिफम मिस्कैन्थी
  • कीट के निम्फ और वयस्क दोनों ही गेहूं से रस चूसते है l
  • टहनियां सूखने एवं मुरझाने लगती है l
  • कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल) 0.75 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें l
  • पोलिस (फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यू जी) 0.2 से 0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें l
आर्मीवर्म मिथिम्ना सेपरेटा
  • सबसे पहले युवा लार्वा पत्ती के ऊतकों को एक तरफ से खाते है।
  • लार्वा दूसरे या तीसरे चरण में पत्ती के किनारे से अंदर की ओर खाना शुरू कर देते है और पत्तियों में छोटे  होल विकसित करना शुरू कर देते है।
  • प्रोक्लेम (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी) 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें l
  • बाराजाइड (नोवलूरॉन 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% एस सी) 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें।
गुझिया घुन / विविल टैनीमेकस इंडिकस
  • इस कीट के केवल वयस्क ही पौधों को क्षति पहुंचाते है।
  • विकास के प्रारंभिक चरण के दौरान वयस्क कीट सीडलिंग को जड़ से ही नष्ट कर देते है l
  • प्रोक्लेम (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें ।
  • बाराजाइड (नोवलुरॉन 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% एस सी) 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें।
दीमक ओडोन्टोटर्मेस ओबेसस
  • टर्मिटेरियम का निर्माण।
  • पौधे सूख जाते है और आसानी से उखड़ जाते है।
  • मियोगी (क्लोरपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी) 400 मिली प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें l
शूट फ्लाई एथेरिगोना सोकाटा
  • डेड हर्ट्स l
  • टहनियों का सड़ना l
  • पौधे का झाड़ीदार रूप में दिखाई देना l
  • कॉन्फिडोर सुपर (इमिडाक्लोप्रिड 30.5% एस एल) 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें l
गुलाबी तना छेदक सेसमिया इन्फेरेंस
  • वानस्पतिक अवस्था में डेड हर्ट के लक्षण प्रकट होते है जिसमें पौधा भूरा होकर मुड़ जाता है और सूख जाता है।
  • फूल आने की अवस्था में सफेद बालियां दिखाई देती है।
  • शोरी (फ्लुबेंडियामाइड 0.7% जीआर) 5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • फरटेरा (क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 0.4% जीआर) 4 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

रोग:

रोग रोगकारक लक्षण प्रबंधन
काला या तना रस्ट पक्सीनिया ग्रेमिनिस ट्रीट्रीसाई
  • तने पर जंग जैसी फुंसियां दिखाई देती है।
  • बाद में ये फुंसियाँ गहरे और काले रंग की हो जाती है।
  • मैग्नाइट (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 18.2% + डाईफेनोकोनाज़ोल 11.4% एससी) 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग करें।
  • एवन्सर ग्लो (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 8.3%+ मैंकोजेब 66.7% डब्ल्यू जी) 600 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
पीला रतुआ / रोली / रस्ट पक्सीनिया स्ट्रॉईफोर्मिस
  • पीले रंग के यूरेडोस्पोर शिराओं के बीच वाले क्षेत्रों को नुकसान पहुंचाते है।
  • धारी जैसा रूप दिखाई देता है।
  • बेनमेन (कार्बेन्डाजिम 50% डी एफ) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें।
  • नेटिवो (टेबुकोनाज़ोल + ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 75% डब्ल्यू जी) 0.6 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें।
भूरा या नारंगी रोली पक्सीनिया रिकांगनीटा
  • पत्तियों पर नारंगी रंग के दाने दिखाई देते है।
  • इनका वितरण अनियमित रूप से होता है l
  • कस्टोडिया (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3% एस सी) 1.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग करें l
करनाल बंट नियोवोसिया इंडिका
  • रोग से प्रभावित पौधों से दुर्गंध आती है l
  • रोग से प्रभावित दाने आमतौर पर काले सूती पाउडर जैसे पदार्थ से ढके होते है l
  • लूना एक्सपीरियंस (फ्लुओपाइरम 17.7%+ टेबुकोनाजोल 17.7% एस सी) 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से उपयोग करें।
अनावृत कंडवा अस्टिलेगो नूडा ट्रीट्रीसाई
  • बालियों पर कालिख युक्त काले बीजाणु दिखाई देते है l
  • गेहूं के दानों में उगने की क्षमता खत्म हो जाती है l
  • कोनिका (कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यू पी) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें l

कटाई एवं मड़ाई:

जब फसल पूर्ण रूप से पीली हो जाए तो हंसिये की सहायता से फसल की कटाई की जाती है फिर फसल को सूखने के लिए खेत में छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा, दानों को थ्रेसर की सहायता द्वारा बालियों से अलग किया जाता है इसके बाद उन्हें साफ करके पैकिंग कर ली जाती है।

उपज:

सामान्यतः गेहूं की उपज औसतन 3 से 4 टन प्रति हेक्टेयर के बीच होती है।

किस्में/संकर:

डीबीडब्ल्यू 222, पीबीडब्ल्यू-502, एचडी 3385, एचडी 3226, डीडीडब्ल्यू 47

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