तरबूज कुकुरबिटेसी कुल के अंतर्गत आता है। पिछले शतक में, तरबूज की खेती व्यवस्थित रूप से सफेद छिलके की तुलना में अत्यधिक लाल एवं रसदार युक्त होने के लिए की जाती रही है। वर्ष 2020-2021 में अकेले भारत देश ने लगभग 31 लाख टन तरबूज का उत्पादन किया था। देश के प्रमुख तरबूज उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड आदि हैं।
मध्यम
बाजार में तरबूज की अनेक प्रकार की किस्में उपलब्ध है जैसे अलग अलग रंगों वाली, बीज रहित, बीज सहित, अलग अलग आकार एवं आकृतियों वाली किस्में उपलब्ध है l तरबूज की प्रमुख किस्में: अर्का माणिक, दुर्गापुर केसर, अर्का ज्योति, स्पेशल नंबर 1, असही यमातो, शुगर बेबी, माधुरी 64, ब्लैक मैजिक, इम्प्रूव्ड शिपर, पूसा बेदाना, दुर्गापुर मीठा, वरुण, विमल, लेखा, ब्लैक थंडर, अर्का आकाश, स्वर्णिमा और अर्का मुथु आदि है।
तरबूज के बीजों का उपचार ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम/किलो बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 10 ग्राम/किलो बीज या कार्बेंडाजिम 2 ग्राम/किलो बीज की दर से किया जाना चाहिए। यह मिट्टी से होने वाले कवक संक्रमण को रोकने में सहायक है, जिससे फल बेहद रूप से प्रभावित होते हैं।
तरबूज की नर्सरी प्रो ट्रे या पॉलीबैग में संरक्षित क्षेत्र में लगाई जाती है l नर्सरी के लिए पॉलिथीन 200 गेज, 10 सेंटीमीटर व्यास और 15 सेंटीमीटर ऊंचाई वाली उपयोग में ली जाती है l नर्सरी में पॉलीबैग 1:1:1 के अनुपात में लाल मिट्टी, बालू मिट्टी और गोबर की खाद के मिश्रण से भरें जाते है। पौध उगाने के लिए एक प्रो ट्रे में 98 सेल्स होती है l मुख्य खेत में करीब 15 दिन पुराने पौधों की रोपाई कर सकते है।
तरबूज की खेती के लिए भूमि की अच्छी तरह से जुताई करने की आवश्यकता होती है। भूमि की अंतिम जुताई से पहले गोबर की खाद 20 टन, एजोस्पिरिलम 5 किलो, फास्फो बैक्टीरिया 5 किलो, स्यूडोमोनास 5 किलो के साथ गोबर की खाद 50 किलो और नीम की खली 100 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। बुवाई के लिए 1.2 मीटर चौडी और 30 सेमी ऊंची उठी हुई क्यारियां बनाई जाती हैं। प्रत्येक पौधों को कम से कम 6 इंच की दूरी पर लगाना चाहिए और प्रत्येक चैनल को कम से कम 2.5 मीटर की दूरी पर रखना चाहिए। ऊंची उठी हुई क्यारियों को बून्द बून्द सिंचाई के साथ संरेखित किया जाना चाहिए।
जलभराव से बचने के लिए उचित जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी तरबूज की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। तरबूज की खेती के लिए मृदा का इष्टतम पीएच मान 6.5-7.5 रहता है।
तरबूज अन्य कद्दू वर्गीय फसलों के विपरीत एक मध्यम फसल है। जनवरी-फरवरी माह के दौरान बोई गई तरबूज की फसल गर्मी के महीनों में अच्छा मूल्य प्रदान करती है l
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