क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि से मूंगफली की फसल के बाद दूसरे स्थान पर होने के कारण सरसों का देश में प्रमुख स्थान है। उत्तर भारत में, तेल का उपयोग मानव उपभोग के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त, इसका उपयोग बालों के विकास के लिए दवाएं और तेल बनाने के लिए किया जाता है। साबुन उद्योग में इसका उपयोग खनिज तेलों के साथ स्नेहन के लिए किया जाता है। इस फसल द्वारा पशुओं के लिए हरा चारा हरे तनों और पत्तियों द्वारा मिल सकता है। इसे तेल की खली के रूप में पशुओं को भी खिलाया जा सकता है।
वानस्पतिक नाम: ब्रेसिका जूनसिया
सामान्य नाम: सरसों (हिंदी), राय (पंजाबी), कटुकू (तमिल), कदुक (मलयालम), अवलु (तेलुगु)।
मौसम: रबी
फसल प्रकार: क्षेत्रीय फसल
आवश्यक मृदा:
सामान्य तौर पर, सरसों मध्यम से भारी मिट्टी में मिट्टी की एक विस्तृत श्रृंखला में अच्छी तरह से उगती है। इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी सबसे आदर्श मानी जाती है।
आवश्यक जलवायु:
सरसों की फसल सूखे एवं ठंडे वातावरण में अच्छी तरह से उगती है, इसलिए इसे रबी की फसल कहा जाता है।
सरसों की इष्टतम वृद्धि के लिए 10°C से 25°C के बीच का तापमान और 625 से 1000 मिमी के बीच की वार्षिक वर्षा उपयुक्त होती है। इसके अलावा, यह पाले से होने वाले नुकसान के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है।
सरसों की फसल को साफ, अच्छी तरह से महीन भुरभुरी, नमी युक्त बीज क्यारी की आवश्यकता होती है l यदि खेत में जुताई के लिए आवश्यकता से कम नमी है तो बुआई से पूर्व सिंचाई करनी चाहिए। सिंचित पारिस्थितिकी में काम करते समय, पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से एवं बाद में तीन से चार जुताई हैरो से करके पाटा चला देना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में, मानसून के दौरान प्रत्येक उत्पादक वर्षा के बाद डिस्क हैरो से जुताई की जानी चाहिए और ढ़ेले विकास एवं नमी के नुकसान को रोकने के लिए प्रत्येक हैरोइंग के बाद हमेशा पाटा लगाना चाहिए।
सरसों की बुआई का उपयुक्त समय 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक रहता है। दूसरी ओर, धान की परती भूमि के लिए रोपाई अवधि आमतौर पर नवंबर के पहले सप्ताह से 15 दिसंबर तक होती है। बीज बुवाई के समय तापमान 32˚C से अधिक नहीं होना चाहिए। वर्षा आधारित परिस्थितियों में, यदि तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से अधिक है तो बुवाई स्थगित करने की सलाह दी जाती है l
सामान्य तौर पर, सरसों के बीजों को 45 सेमी × 15 सेमी की दूरी पर 3.5-5 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर के साथ पंक्तियों में बोना चाहिए। बीजों को बालू या राख में मिलाकर बुवाई के लिए उपयोग कर सकते है। क्षारीय वातावरण में, रिज-फ़रो का उपयोग करना फायदेमंद होता है। बीज बुवाई के तीन सप्ताह बाद, आदर्श पौधों की संख्या को बनाए रखने के लिए विरलन की आवश्यकता होती है।
सरसों में सफेद रोली और मृदुरोमिल आसिता रोग फसल की उपज को कम कर सकते है, इसे रिडोमिल गोल्ड (मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64%) 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार कर कम किया जा सकता है। इसी प्रकार, ट्राइकोडर्मा 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार कर मिट्टी जनित रोगों को कम कर सकते है। बीज जनित कीटों के संक्रमण को रोकने के लिए कॉन्फिडोर (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल) 1 मिली प्रति लीटर पानी प्रति 1 किलो बीज की दर से उपचारित करने से मदद मिलती है।
सरसों की फसल को 190 से 400 मिमी सिंचाई जल की आवश्यकता होती है। क्रांतिक अवधियों में, फसल पानी के तनाव के प्रति अत्यंत संवेदनशील होती है। सरसों में सिंचाई की सबसे महत्वपूर्ण अवस्थाएं फूल आने से पहले की अवस्था एवं सिलिका बनने की अवस्था होती है।
फसल में अनावश्यक उर्वरक प्रयोग से बचने एवं लाभप्रदता बढ़ाने के लिए, उर्वरक को मिट्टी परीक्षण के परिणामों के आधार पर दिया जाना चाहिए। समय से बुवाई के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 80:40:40 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से एवं देर से बुवाई के लिए 100:50:50 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें, साथ ही सल्फर 40 किलो, जिंक सल्फेट 25 किलो और बोरेक्स 10 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाना चाहिए। सिंचित वातावरण में, नाइट्रोजन की आधी मात्रा बेसल खुराक के रूप में और शेष बची हुई आधी मात्रा बुवाई के 30 से 45 दिनों के बाद पहली सिंचाई के दौरान प्रयोग करें। बारानी क्षेत्रों में बुवाई के समय पोषक तत्वों की पूरी मात्रा का प्रयोग करें।
बीज बुवाई के बाद 15-20 और 35-40 दिनों में हाथ से दो बार निराई करने की सलाह दी जाती है। इसी प्रकार, प्री इमर्जेन्स शाकनाशी पेंडीमिथालिन 1 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कर सकते है l ओरोबैंकी के सफल नियंत्रण के लिए क्रमशः फसल चक्र और स्पॉट एप्लीकेशन या पैराक्वाट @ 2.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर सकते है।
कीट:
1) सरसों एफिड / माहू (लिपाफिस एरिसिमी):
लक्षण:
प्रबंधन:
2) डायमंड बैक मोथ (प्लूटेला ज़ाइलोस्टेला) :
लक्षण:
प्रबंधन:
3) लीफ वेबर (क्रोकिडोलोमिया बिनोटेलिस):
लक्षण:
प्रबंधन:
कीट के प्रबंधन के लिए टाटाफेन (फेनवलरेट 20 ईसी) 2.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव कर सकते है।
4) पेंटेड बग (बरग्राडा हिलारिस क्रूसिफेरारम):
लक्षण:
प्रबंधन:
5) मस्टर्ड सॉ फ्लाई (अथेलिया लुगेन्स):
लक्षण:
प्रबंधन
रोग:
1) सफेद रोली (एल्बुगो कैंडिडा)
लक्षण:
प्रबंधन:
रोग के प्रबंधन के लिए कोंटाफ (हेक्साकोनाज़ोल 5% एससी) 2 मिली प्रति लीटर पानी में या टिल्ट (प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी) 2 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते है l
2) पावडरी मिल्ड्यू (एरीसिपे क्रुसिफेरारम):
लक्षण:
प्रबंधन:
इस रोग के प्रबंधन के लिए मेरिवोन (फ्लुक्सपायरोक्सैड 250 जी/एल + पायराक्लोस्ट्रोबिन 250 जी/एल एससी) 0.4 मिली प्रति लीटर पानी या लूना (फ्लुओपाइरम 17.7% + टेबुकोनाजोल 17.7% एससी) 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
3) अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट (अल्टरनेरिया ब्रेसिका):
लक्षण:
रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों, तने और सिलिका पर छोटे – छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है l
धब्बे इकट्ठे होकर एक बड़ा रूप बना लेते है l
प्रबंधन:
पत्तियों पर स्पर्श (मैंकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से दस दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।
कटाई और मड़ाई:
जब सरसों की फसल की 75% फलियाँ सुनहरे पीले रंग की हो जाए तब फसल की कटाई करनी चाहिए। फली टूटने वाले नुकसान को कम करने के लिए, फसल की कटाई आदर्श रूप से सुबह जल्दी करनी चाहिए, जब फलियाँ पिछली रात की ओस की बूंदों से गीली हो। सरसों के पौधों की कटाई करते समय उन्हें एक साथ बांधकर 5-6 दिनों के लिए अच्छे से धूप में सुखाये।
मड़ाई के लिए सरसों के पौधों को डंडे से कूटना चाहिए।
उपज:
सरसों की फसल से औसतन 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज की अपेक्षा करें। फसल की उपज खेती की किस्म और अपनाए गए प्रबंधन के तरीकों के आधार पर, 1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है।
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