खीरे की खेती
खीरे का वानस्पतिक नाम कुकुमिस सैटाईवस है। खीरे की उत्पत्ति भारत में हुई है। यह एक बेलदार पौधा है जिसका उपयोग पूरे भारत में गर्मियों की सब्जी के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग सलाद के रूप में किया जाता है एवं सब्जी के रूप में पकाया जाता है। खीरे में 96 प्रतिशत पानी होता है जो गर्मी के मौसम में सेहत के लिए अच्छा होता है। यह बेलों पर लगते है इसके फूल पीले रंग के होते हैं। खीरा मोलिब्डेनम और “विटामिन के” का एक उत्कृष्ट स्रोत है। इसका उपयोग त्वचा, गुर्दे और हृदय की समस्याओं को ठीक करने के लिए किया जाता है आइये जानते हैं खीरे की खेती का विवरण।
खीरा गर्म मौसम की फसल इसके लिए इसकी खेती के लिए 18-24 सेल्सियस तापमान अच्छा होता है।
खीरे की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली कार्बनिक पदार्थों से भरपूर बलुई दोमट मृदा के साथ – साथ 6.5-7.5 के बीच का पीएच मान आदर्श होता हैं।
इसकी बुवाई जनवरी से फरवरी माह में की जाती है
एक एकड़ भूमि के लिए 1 – 1. 5 किलोग्राम की दर से बीज पर्याप्त है।
खीरे की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार और खरपतवार मुक्त खेत की आवश्यकता होती है। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए बुवाई से पहले 3-4 जुताई कर लेनी चाहिए।
खीरे के बीजो की बुवाई खेत में तैयार की गई मेड़ पर की जाती है | इसके लिए खेत में चार फ़ीट की दूरी रखते हुए एक से सवा फ़ीट चौड़ी मेड़ को तैयार कर लिया जाता है| इन मेड़ो पर बीजो की बुवाई दो से तीन फ़ीट की दूरी पर की जाती है| इसके अतिरिक्त यदि किसान भाई बीजो की बुवाई समतल खेत में करना चाहते है, तो उसके लिए खेत में एक फ़ीट गहरी नालियों को तैयार करें| इसके बाद इन नालियों में एक फ़ीट की दूरी पर बीजो को लगाये। खीरे की साधारण क़िस्म में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 3 किलो ग्राम बीज तथा संकर क़िस्म में 2 किलो ग्राम बीजो की आवश्यकता होती है|
निराई-गुड़ाई से खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है और रासायनिक रूप से भी नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए उचित जानकारी की आवश्यकता होती है।
बुवाई के लगभग 45-50 दिनों में पौधे उपज देने लगते हैं। मुख्य रूप से 10-12 कटाई की जा सकती है। कटाई मुख्य रूप से तब की जाती है जब बीज नरम होते हैं और फल हरे और युवा होते हैं। कटाई तेज चाकू या किसी नुकीली चीज से की जाती है। यह औसतन 33-42 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।
फल का कीड़ा– इसको नियंत्रण करने के लिए नीम का तेल @ 3.0% प्रभावित पत्तों पर छिड़काव करें।
कोमल फफूंदी – कोमल फफूंदी को 10 दिनों के अंतराल पर दो बार मैनकोजेब या क्लोरोथालोनिल 2 ग्राम/लीटर का छिड़काव करके नियंत्रित किया जा सकता है।
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