अमरुद भारत की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक फल फसलों में से एक है। इस फसल का उत्पत्ति स्थान मेक्सिको माना जाता है। यह कैल्शियम और फास्फोरस के साथ विटामिन सी और पेक्टिन का समृद्ध स्रोत होता है। जी हाँ अमरुद आम, केला और साइट्रस के बाद देश की चौथी सबसे महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। इसकी खेती देश के सभी राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु आदि में की जाती है,वहीँ इनमें से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश इसकी खेती के प्रमुख राज्यों में आते हैं। यदि इसकी खेती सही तरह से की जाये तो किसान अधिक पैसा कमा सकते है। तो आइये जानते हैं अमरुद की खेती की पूरी जानकारी।
अमरूद की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है। 1000 मिमी की वार्षिक वर्षा इसकी वृद्धि और विकास के लिए आदर्श मानी जाती है। इसकी खेती के लिए गहरी, भुरभुरी, हल्की बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। वहीँ इसकी खेती के लिए मृदा का आदर्श पीएच 5-6 के बीच होना चाहिए।
अमरुद की खेती के लिए भूमि को तैयार करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर भुरभुरा कर लें। उसके बाद भूमि को समतल कर लें। इस बीच ध्यान रखें भूमि को इस प्रकार तैयार करें कि खेत में पानी का ठहराव न हो।
अमरूद की रोपाई के लिए जून से जुलाई का महीना सबसे अच्छा समय है।
रोपण के लिए 6x6 मीटर की दूरी का उपयोग करें।
अमरुद का प्रसारण निम्न विधियों जैसे बीज लेयरिंग, एयर लेयरिंग, ग्राफ्टिंग, कटिंग और ऊतक संवर्धन आदि से किया जाता है, फिर उसको प्रत्यारोपण विधि से खेतों में लगाया जाता है।
अमरुद में सामान्यतः फूलों की 3 बहार आती हैं। जनवरी से फरवरी माह में आते हैं उसे आंबे बहार कहते हैं। जिसके फल सितम्बर माह तक आते हैं।
खरपतवार वृद्धि को रोकने के लिए समय – समय पर निराई– गुड़ाई करें और आवश्यकता पड़ने पर रासायनिक उपचार को अपनायें।
अमरूद फसल की तुड़ाई ( मई से जून ) माह को छोड़ कर पुरे साल की जाती है। रोपण के बाद 2-3 वर्षों के भीतर फलों का फलना शुरू हो जाता है। फलों के पक जाने पर तुड़ाई करनी चाहिए। पकने पर फल का रंग गहरे हरे से हरे-पीले रंग में बदल जाता है। तुड़ाई उचित समय पर करें। फलों को अधिक पकने से बचाएं क्योंकि ज्यादा पकाव से गुणवत्ता खराब हो जाती है।
फल की मक्खी: यह अमरूद का गंभीर कीट है। मादा मक्खी नए फलों के अंदर अंडे देती है। उसके बाद नए कीट फल के गुद्दे को खाते हैं जिससे फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है। इसके नियंत्रण के लिए मैलाथियान 0.1% का छिड़काव करें।
मुरझाना, ( विल्ट ), सूखना: रोग के लक्षण संक्रमित पेड़ों पर उनके रोपण के कई महीनों बाद प्रकट होते हैं यह रोग कवक द्वारा होता है। इसके विरल पत्ते, खंडित शाखाएं, पत्तियों का पीलापन और मुरझाना महत्वपूर्ण लक्षण। गलन को नियंत्रित करने के लिए रोगग्रस्त वृक्षों को उखाड़कर जला दें। मृदा में ड्रेन्च विधि से काॅन्टाफ 0.3% और बाविस्टिन 0.1% का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
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