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सरसों की खेती: अच्छे उत्पादन के लिए जानिए बुवाई का उचित समय और विधि, जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख

सोयाबीन और मूंगफली के बाद सरसों दुनिया की तीसरी महत्वपूर्ण तिलहन फसल मानी जाती है। इसकी खेती देश के सभी राज्यों जैसे – पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरात आदि में बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी खेती के लिए रबी का मौसम उपयुक्त होता है। सरसों के बीज और उसके तेल का इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है एवं उसकी पत्तियों का उपयोग सब्जी के लिए किया जाता है, साथ ही इसकी खली का उपयोग मवेशियों को खिलाने के लिए किया जाता है। सरसों का सेवन पूरे देश में बड़ी मात्रा में किया जाता है। इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफेदार मानी जाती है। अगर आप भी सरसों की खेती करना चाहते हैं एवं उससे अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो चलिए जानते हैं इसकी खेती की संपूर्ण जानकारी। 

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान:

सरसों की खेती के लिए ठंडी और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती हैै। 

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त मृदा:

इसकी खेती के लिए बलुई दोमट से चिकनी दोमट मृदा सबसे उपयुक्त होती है। फसल में उचित वृद्धि और विकास के लिए मृदा में अच्छी जलसंरक्षण प्रणाली होनी चाहिए। इसके आलावा मृदा का पीएच मान 5.5 से 6.5 के बीच आदर्श होता है।  

सरसों की खेती

सरसों की खेती के लिए इस तरह करें भूमि की तैयारी:

  • सरसों की खेती के लिए क्यारियों की आवश्यकता होती है। इसमें भूमि की तैयारी के लिए खेत की अच्छे से जुताई कर भुरभरा कर लें।
  • खेत में पिछली फसल के अवशेष को नष्ट कर दें तथा मृदा को रोटावेटर से भुरभुरा कर लें।

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त बुवाई का समय और विधि:

इसकी बुबाई सीड ड्रिल मशीन से और किसान भाई अपनी सुविधा अनुसार हाथ से छिड़कवा विधि से भी करते है इसकी बुबाई के लिए उपयुक्त समय सितम्बर के दूसरे पखवाड़े से अक्टूबर के पहले पखवाड़े तक होता है।   

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त पौधा रोपण दूरी:

सामान्यत: सरसों को पंक्तियों में बोया जाता है। इसके लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी होनी चाहिए एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी होनी चाहिए।  

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त बीज दर:

इसकी बुबाई के लिए 4 – 5 किग्रा/एकड़ बीज की आवश्यकता होती है।  

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त खरपतवार नियंत्रण:

 जब फसल में अवांछित पौधे जैसे ही दिखाई देने लगे तब इसमें निराई गुड़ाई करनी चाहिए। अगर खरपतवारों का अधिक मात्रा में आक्रमण हो तो सुविधा अनुसार रसायनों का उपयोग करें।  

सरसों की खेती के लिए उपयुक्त सिंचाई प्रक्रिया:

इसमें 30 – 40 दिनों बाद में पहली सिचाई करें। दूसरी सिचाई फूल आने पर करें। 

सरसों की खेती के लाभ

सरसों फसल में लगने वाले रोग एवं कीट और उनका जैविक नियंत्रण:

 1. एफिड्स / माहु –  

यह एक रस चूसक कीट है। इसको नियंत्रण करने के लिए धनप्रीत कीटनाशक का 40 – 60 ग्राम / एकड़ का छिड़काव करें।    

2. सफेद रतुआ / वाइट बड रोग – 

  • यह सरसों का बहुत मूल्य और खतरनाक रोग है।
  • इसमें पौधे सफ़ेद पॉउडर से ढक जाते है बाद में पौधा सूखने लगता है।
  • इसके नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% WP को 2 ग्राम प्रति लीटर से छिड़काव करें।

निष्कर्ष:

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