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गेंदा की खेती: संपूर्ण खेती की जानकारी

गेंदा एक बारहमासी फूलों वाली फसल है। इसके पौधे अपने नारंगी और पीले फूलों के लिए लोकप्रिय हैं, जो बगीचों और परिदृश्यों की सुंदरता को बढ़ाते हैं। मेक्सिको और मध्य अमेरिका के मूल निवासी होने के बावजूद, अब दुनिया में हर जगह गेंदा की खेती की जाती है। भारत में गेंदा की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि राज्यों में की जाती है। यह एक सजावटी फसल होती है, इसलिए इसकी खेती मुख्य रूप से इसके रंग बिरंगे फूलों के लिए की जाती है। इसके  फूलों का उपयोग शादी – विवाह, मदिरों एवं कई प्रकार के समरोह में किया जाता है। सजावटी उपयोग के आलावा गेंदा के अपने कई औषधीय महत्व भी होते हैं। भारत में कई किसानों के लिए गेंदा की खेती आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

भारत में गेंदा के देशी नाम:

गेंदा (हिंदी), बंटी पुव्वु (तेलुगु), सामंथी (तमिल), चंडू हुवु (कन्नड़), सामंथी (मलयालम), गैंदा (बंगाली), झेंडू (मराठी)।

जलवायु और मृदा:

गेंदे के फूलों की वृद्धि और फूल आने के लिए हल्की जलवायु की आवश्यकता होती है। फूलों के अच्छे विकास के लिए इष्टतम तापमान18 – 20 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त है। इससे उच्च तापमान (> 35 डिग्री सेल्सियस) पौधों की वृद्धि को रोक सकता है, जिससे फूलों के आकार और संख्या में कमी आ सकती है। सर्दियों के दौरान भयंकर पाले के कारण पौधों और फूलों को नुकसान हो सकता है। 

किस्में:

        किस्में                       बिगहाट स्टोर में उपलब्ध बीज
अफ्रीकन गेंदा               अफ़्रीकी गेंदा डबल नारंगी बीज, एनएस अफ़्रीकी गेंदा बीज 

एनएस अफ़्रीकी गेंदा F1 वेनिला व्हाईट, एन एस अफ़्रीकी गेंदा

मैजेस्टिक पीले बीज, अफ़्रीकी डबल पीला गेंदा बीज

एनएस अफ़्रीकी गेंदा F1 इंका मिश्रण

फ्रेंच गेंदा फ्रेंच गेंदा, सर्पन संकर फ्रेंच गेंदा (एसएफआर), आईआरआईएस संकर फूल फ्रेंच गेंदा लाल रंग के बीज

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बुवाई का समय:

गेंदा एक बारहमासी फूलों वाली फसल है। इसकी खेती सालभर की जा सकती है। 

रोपण का मौसम बुवाई का समय  रोपाई का समय  फूल आने का समय टिप्पणियां
ग्रीष्म मौसम जनवरी-फ़रवरी फरवरी-मार्च मध्य मई-जुलाई तापमान अधिक होने के कारण फूलों का आकार छोटा होगा। बाजार में मांग अधिक होने से अच्छा मुनाफा मिलेगा।
बरसात का मौसम मध्य जून मध्य जुलाई मध्य सितंबर-नवंबर बाजार में मांग अधिक होने के कारण फसलों को अच्छे दाम मिलते हैं।
सर्दियों का मौसम मध्य सितंबर मध्य अक्टूबर मध्य जनवरी प्रचुर मात्रा में खिलने वाले, सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले फूल, प्रति यूनिट उच्च उपज लेकिन बाजार दर कम है।

 बीज दर:

500 – 800 ग्राम/एकड़ 

नर्सरी की तैयारी:

गेंदा का प्रसार आमतौर पर बीजों के माध्यम से किया जाता है। बुवाई से पहले बीजों को ठंडे गुड़ के घोल में 10 मिली एज़ोस्पाइरिलम में मिलाकर उपचारित करें और बीज की सतह पर समान रूप से लेप करें। सुविधाजनक लंबाई -चौड़ाई 75 सेमी और 10-20 सेमी ऊंचाई के नर्सरी बेड तैयार करें। अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में डालें और उन्हें मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। बीज को 5 सेमी की दूरी पर कतारों में बोएं। बुवाई की गहराई 2 – 3 सेमी होनी चाहिए। बीजों को गोबर की खाद या महीन रेत से ढक दें। बीज बोने के 4-5 दिन के अन्दर अंकुरित हो जायेंगे। बुवाई के एक माह बाद पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाएगी। 

मुख्य खेत की तैयारी और रोपाई:

खेत की अच्छी जुताई करें और फिर एक एकड़ खेत में 10 टन गोबर की खाद डालें। बुवाई से पहले खेत की सिंचाई कर लेनी चाहिए। रोपाई के लिए अंकुरों का उपयोग बुवाई के 1 महीने के बाद या जब उनमें 4-5 पत्तियाँ हों, किया जा सकता है। अफ्रीकी गेंदा के प्रकार के लिए पंक्ति-पंक्ति के बीच की दूरी 45 सेमी रखें और फ्रेंच मैरीगोल्ड के मामले में पंक्ति-पंक्ति के बीच की दूरी 30 सेमी रखें (ध्यान: रोपाई शाम के समय करें, क्योंकि इस समय तापमान थोड़ा ठंडा होता है।)

उर्वरक की आवश्यकता:

गेंदा के लिए उर्वरक की सामान्य अनुशंसित मात्रा एनपीके की 80:40:80 किलोग्राम/हेक्टेयर है।

पोषक तत्व उर्वरक  मात्रा(प्रति हेक्टेयर) उपयोग का समय
जैविक FYM 10 टन आखरी जुताई के समय
कात्यायनी एक्टिवेटेड ह्यूमिक एसिड (पोषक तत्वों और ट्रेस तत्वों के अवशोषण में सुधार करता है)  छिड़काव: 1 ग्राम/लीटर पानी पहला छिड़काव: बुवाई के 15 दिन बाद

फूल आने तक 10-12 दिन के अंतराल पर छिड़काव जारी रखें

 

नाईट्रोजन  यूरिया 20 किग्रा  बेसल
20 किग्रा   जड़ों के पास खाद को दिया जाता है (रोपण के 45 दिन बाद)
फास्फोरस सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) 40 किग्रा   बेसल 
पोटेशियम म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) 80 किग्रा   बेसल  
आवश्यक पोषक तत्व (प्रमुख, माध्यमिक और सूक्ष्म पोषक तत्व)।)  मल्टीप्लेक्स फ्लावर बूस्टर (फूलों का आकार और संख्या बढ़ाता है) पर्णीय छिड़काव: 4 ग्राम/लीटर पानी  पहला छिड़काव: रोपाई के 25-30 दिन बाद।

20 दिन के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव करें

समुद्री शैवाल का अर्क बायोप्राइम प्राइम 7525 (पर्ण वृद्धि को बढ़ाता है और अधिक फूल आने को प्रेरित करता है) पर्णीय छिड़काव: 2 मिली/लीटर पानी पहला छिड़काव: फूल आने की शुरुआत में

15-20 दिन के अंतराल पर 2 से 3 छिड़काव करें

 सिंचाई:

रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए। वनस्पति विकास के दौरान पानी की कमी से बचें क्योंकि इससे पौधे की वृद्धि रुक ​​सकती है। सिंचाई की आवृत्ति मुख्य रूप से मिट्टी के प्रकार और वर्ष के समय से प्रभावित होती है। सर्दियों में हर 8-10 दिनों में सिंचाई की अनुमति होती है, जबकि गर्मियों में हर 4-5 दिनों में सिंचाई की अनुमति होती है। पानी की कमी को रोकने के लिए कली बनने से लेकर कटाई तक नमी का निरंतर प्रवाह बनाए रखा जाना चाहिए।

आंतरिक क्रियाएं:

1. मिट्टी चढ़ाना

पौधों की स्थिरता में सुधार, बेहतर जल निकासी को बढ़ावा देने और खरपतवार के विकास को रोकने  के लिए आमतौर पर रोपाई के 3 – 4 सप्ताह बाद मिट्टी चढ़ा दी जाती है।

2.खरपतवार प्रबंधन

पौधों की प्रचुर वृद्धि के लिए खेत को खरपतवार मुक्त अवस्था में रखना चाहिए। जरूरत पड़ने पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। आम तौर पर, विकास अवधि के दौरान 4 – 6 हाथ से निराई-गुड़ाई करना आवश्यक होता है।

3. पिंचिंग 

गेंदा के पौधे को हरा-भरा और फूलों से भरा रखने के लिए बीच-बीच में पिंचिंग करते रहें। शीर्ष प्रभुता के कारण पौधे लम्बे एवं पतले हो जाते हैं, जिन पर काफी कम संख्या में शाखएँ निकलती हैं, इसके परिणामस्वरूप  फूलों की संख्या भी कम हो जाती है। इसलिए पौधे के फैलाव को बढ़ाने के लिए पिचिंग करना बेहद जरुरी  है। इस प्रक्रिया में पौधे के शीर्ष भाग (2 – 3 से.मी) को हाथ से तोड़ दिया जाता है। इस तरह करने से पौधे की बगल वाली शाखाएं अधिक संख्या में निकलती हैं एवं कलियाँ भी अधिक संख्या में निकलती हैं और फूलों की उपज में बढ़ोत्तरी होती है। 

4. स्टेकिंग 

इसमें फूलों के वजन या तेज हवाओं के कारण लम्बे एवं ऊंचे पौधों को गिरने से रोकने के लिए उन्हें सहारा देना स्टेकिंग प्रक्रिया कहलाता है। लंबे अफ़्रीकी गेंदे के पौधों को बांस से बांधकर सहारे की ज़रूरत होती है।

पौध संरक्षण तकनीकें:

गेंदा के पौधे में लगने वाले कीट:

प्रमुख कीट नुकसान के लक्षण नियंत्रण के उपाय
मीली बग
  • मीली बग नई टहनियों, तने और पत्तियों में बड़ी संख्या में मौजूद होते हैं। 
  • पत्तियाँ पर इसके द्वारा स्रावित होने वाले शहद जैसे चिपचिपे पदार्थों से कालीफफुन्दी का विकास होता है। 
  • झुर्रीदार पत्तियाँ।
  • अंकुरों के शीर्ष भाग में धीमी वृद्धि दिखाई देती है।
  • संक्रमित पौधे के भागों की छंटाई करें।
  • मछली का तेल रोजिन साबुन 25 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • कैबी मीली रेज़ बायोपेस्टीसाइड को 1 – 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

रासायनिक नियंत्रण:

एफिड्स /माहू 
  • यह रस चूसते हैं और पत्तियों को मोड़कर विकृत कर देते हैं।
  • प्रभावित पत्तियां पीली होकर मुरझाने लगती हैं।
  • पत्तियाँ पर इसके द्वारा स्रावित होने वाले शहद जैसे चिपचिपे पदार्थों से कालीफफुन्दी का विकास होता है।
  • पत्तियों के नीचे या तनों पर छोटे, गुच्छेदार कीटों (एफ़िड्स) की उपस्थिति होती है। 
  • फसल चक्र अपनाएं।
  • खेत में स्वच्छता बनाए रखें।
  • मक्का, सेम या लहसुन के साथ अंतरफसल करें।
  • प्रति एकड़ 4-6 तपस पीले चिपचिपे जाल लगाएं।
  • नीम के तेल का 0.3% 2.5 – 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • राख और हल्दी पाउडर को समान मात्रा में मिलाकर पौधे पर छिड़का जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण:

लाल मकड़ी 
  • यह पत्तियों से रस चूसते हैं और पत्ती की सतह पर छोटे, लाल या भूरे धब्बे बनाते हैं।
  • पौधे पर पत्तियों और फूलों को ढकने वाली बारीक जालियों की उपस्थिति दिखाई देती है।
  • बाद के चरणों में प्रभावित पत्तियाँ भुरभुरी, लाल और भूरी (कांसी)  रंग की हो जाती हैं।
  • समय से पहले पत्तियों का गिरना और विकास रुक जाता है। 
  • पौधे से घुन को हटाने के लिए उच्च दबाव वाले पानी के स्प्रे का उपयोग करें।
  • नीम के तेल के अर्क को 1 – 2 मिली/लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • रॉयल क्लियर माइट को 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें
  • गोमूत्र को पानी में घोलकर छिड़काव करें (1:20) 

रासायनिक नियंत्रण:

 

भृंग/बीटल 
  • यह नई पत्तियों और कोमल टहनियों को खाते हैं।
  • यह पत्तियों में छेद कर सकते हैं, जिससे पत्तियां कटी-फटी, असमान दिखाई देने लगती हैं।
  • पौधे की वृद्धि रुक जाती है। 

रासायनिक नियंत्रण:

पत्ती फुदका 
  • यह खासकर बरसात के मौसम पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। 
  • प्रभावित पत्तियाँ पीली या भूरी हो जाती हैं।
  • प्रभावित पत्तियां और टहनियां मुरझा जाती हैं।
  • फ्रेंच किस्म का गेंदा अधिक संवेदनशील होता है।
  • प्रति एकड़ बैरिक्स मैजिक स्टिकर क्रोमेटिक ट्रैप पीली शीट की 10 शीट का उपयोग करें।
  • निम्बेसिडीन 6 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

रासायनिक नियंत्रण:

थ्रिप्स (तैला)
  • प्रभावित पत्तियों का विकृत होना।
  • पत्तियों पर चांदी जैसे धब्बों की उपस्थिति होना।
  • फूलों की पंखुड़ियाँ पर धब्बे बनना, जिससे उनकी सुंदरता कम हो जाती है। 
  • यह विकसित हो रही कलियों को भी खाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विकृत फूल बनते हैं।
  • 1 एकड़ खेत के लिए 6 – 8 पीले चिपचिपे जाल लगाएं।
  • के बी थ्रिप्स रेज़ कीटनाशक को 1 – 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • नीम 0.15% 2 – 2.5 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • नीम की खली को एलोवेरा के साथ मिलाकर पीस लें। इन्हें 10 दिन तक पानी में भिगोकर रखें. फिर, इस मिश्रण का उपयोग छिड़काव के लिए करें।

  रासायनिक नियंत्रण:

लीफ माइनर  
  • पत्तियों पर सफेद या चांदी जैसे निशानों होना।
  • पत्ती पर छोटे-छोटे भूरे धब्बों का होना।
  • प्रभावित पत्तियाँ सिकुड़ी हुई या विकृत हो जाती हैं।
  • पत्तों का समय से पहले गिरना।

रासायनिक नियंत्रण:

 गेंदा के पौधे में लगने वाले रोग:

प्रमुख रोग  नुकसान के लक्षण नियंत्रण के उपाय
डैम्पिंग ऑफ 
  • अंकुरण चरण के दौरान सबसे अधिक होता है।
  • युवा पौधों पर नेक्रोटिक छल्ले या धब्बे दिखाई देते हैं।
  • गंभीर मामलों में, प्रभावित पौधे मिट्टी से बाहर आने से पहले ही मर जाते हैं। 

रासायनिक नियंत्रण:

चूर्णिल फफूंदी
  • पत्तियों, तनों और फूलों पर सफेद चूर्ण जैसा दिखाई देना।
  • संक्रमित पत्तियां पीली हो सकती हैं और समय से पहले गिर सकती हैं।
  • फूलों का कम आना।
  • के बी फंगो रेज़ को 1 – 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • पत्तियों पर 2 किलो हल्दी पाउडर और 8 किलो लकड़ी की राख का मिश्रण छिड़का जा सकता है।

रासायनिक नियंत्रण:

  • अमिस्टार टॉप कवकनाशी 1 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • रोको कवकनाशी 0.5 – 1 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • सल्टाफ फफूंदनाशी 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
मुरझाना और तना सड़न 
  • मिट्टी नम होने पर भी प्रभावित पौधों की पत्तियाँ ढीली, झुकी हुई और मुरझाई हुई दिखाई दे सकती हैं।
  • प्रभावित तने मुलायम, पतले, भूरे रंग के हो सकते हैं और बाद में सड़ सकते हैं।
  • पौधे का रुका हुआ विकास होना।

रासायनिक नियंत्रण:

  • मृदा उपचार के लिए रिडोमिल गोल्ड का उपयोग 1 – 1.5 ग्राम/लीटर पानी में किया जा सकता है।
कॉलर सड़न
  • तने के आधार पर गहरे भूरे या काले धब्बे दिखाई देते हैं।
  • सड़न के कारण पौधे का कॉलर भाग नरम और गूदेदार हो जाता है।
  • बाद में पौधे की मृत्यु हो जाती है।

रासायनिक नियंत्रण:

पत्ती धब्बा एवं झुलसा रोग
  • प्रभावित पत्तियों पर छोटे, भूरे रंग के नेक्रोटिक धब्बे विकसित हो जाते हैं।
  • बाद के चरणों में, ये धब्बे विलीन हो सकते हैं और पत्तियां पीली हो सकती हैं और समय से पहले गिर सकती हैं।
  • परिणामस्वरुप वनस्पति विकास ख़राब होता है।

रासायनिक नियंत्रण:

फूल कली सड़न
  • रोग का संक्रमण युवा फूलों की कलियों में होता है।
  • संक्रमित फूलों की कलियाँ सिकुड़ कर गहरे भूरे रंग की हो सकती हैं जो बाद में सूख जाती हैं।
  • रोगज़नक़ पत्तियों को संक्रमित करके झुलसा रोग भी पैदा कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप पुरानी पत्तियों के किनारों पर भूरे रंग के नेक्रोटिक धब्बे बन जाते हैं।
रासायनिक नियंत्रण:

बोट्रीटीस ब्लाइट/ग्रे फफूंद
  • रोग बढ़ने पर फूल पानी से भीगे हुए दिखाई दे सकते हैं और भूरे या स्लेटी रंग के हो सकते हैं।
  • फूलों और पत्तियों पर भूरे रंग की फफूंदी की वृद्धि दिखाई देती है।
  • तने सड़ सकते हैं जिससे पौधे नष्ट हो सकते हैं।

रासायनिक नियंत्रण:

 फसल कटाई:

गेंदे के फूल तब कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं जब वे अपने पूरे आकार में पहुंच जाते हैं, जो आमतौर पर रोपाई के दिन से लगभग 2.5 महीने बाद होता है। पहली फसल के बाद, पौधे पर अगले 2-2.5 महीने तक फूल आते रहते हैं। पैदावार बढ़ाने के लिए 3 दिन में एक बार फूल तोड़ना चाहिए। कटाई दिन के ठंडे भाग में, अर्थात सुबह या देर शाम के समय की जानी चाहिए। फूलों को डंठल वाले भाग सहित तोड़ना चाहिए। कटाई के बाद गेंदे के फूलों के फूलदान के जीवन को बढ़ाने के लिए, फूलों की कटाई से पहले खेत में सिंचाई करने की सलाह दी जाती है। लेकिन अत्यधिक पानी देने से बचना चाहिए क्योंकि इससे फूल भारी और मुलायम हो सकते हैं, जिससे उन्हें नुकसान होने की आशंका रहती है।

स्थानीय बाजार में परिवहन के लिए, ताजे गेंदे के फूलों को बांस की टोकरियों या बोरियों में पैक किया जाना चाहिए।

उपज: 

फूलों की उपज मौसम, मिट्टी की उर्वरता और किस्म पर निर्भर करती है।

  • अफ़्रीकी गेंदा: 3 – 4 टन/एकड़
  • फ़्रेंच गेंदा: 4.5 – 7 टन/एकड़।
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