HomeCropप्याज की खेती: रोपाई से लेकर फसल कटाई तक की समस्त जानकारी

प्याज की खेती: रोपाई से लेकर फसल कटाई तक की समस्त जानकारी

सब्जियों और मसाले दोनों रूप में प्याज एक महत्वपूर्ण फसल है। इसमें कुछ मात्रा में प्रोटीन और विटामिन पाए जाते हैं। इसके आलावा प्याज में औषधीय गुणों की एक विस्तृत श्रृंखला भी पायी जाती है। इसका उपयोग सलाद, अचार और सूप में किया जाता है। प्याज की खेती भारत के निम्न राज्यों में की जाती है जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और बिहार आदि शामिल हैं। भारत में प्याज का सबसे अधिक उत्पादन मध्य प्रदेश राज्य में किया जाता है।

प्याज की खेती के लिए उपयुक्त मृदा:-

प्याज की खेती के लिए आमतौर पर सभी प्रकार की मृदा उपयुक्त होती है। लेकिन अच्छी जल निकासी, नमी धारण क्षमता और कार्बनिक पदार्थ से भरपूर दोमट से चिकनी मिट्टी आदर्श मानी जाती है। प्याज की खेती के लिए मृदा का आदर्श पीएच मान 6 – 7 के बीच उपयुक्त होता है। 

रोपण का मौसम और समय:-

राज्य  मौसम  बुवाई का समय  रोपण का समय  कटाई का समय 
महाराष्ट्र, गुजरात के कुछ भाग  खरीफ  मई – जून  जुलाई – मध्य अगस्त  अक्टूबर – दिसम्बर 
अगेती रबी और पछेती खरीफ  अगस्त- सितंबर का पहला सप्ताह सितम्बर – अक्टूबर  मध्य जनवरी-फरवरी अंत
रबी  अक्टूबर – मध्य नवंबर दिसंबर-जनवरी पहला सप्ताह अप्रैल – मई 
तमिल नाडु और आंध्र प्रदेश  अगेती खरीफ  मार्च – अप्रैल  अप्रैल – मई  जुलाई – अगस्त 
खरीफ  मई – जून  जुलाई – अगस्त  अक्टूबर – नवंबर 
रबी  सितम्बर- अक्टूबर  नवम्बर – दिसम्बर  मार्च – अप्रैल 
राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश खरीफ  मई के अंत  – जून जुलाई – मध्य अगस्त नवंबर-दिसंबर
रबी  अक्टूबर के अंत – नवंबर मध्य दिसंबर – मध्य जनवरी मई – जून 
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा खरीफ  जून – जुलाई  अगस्त – सितंबर  नवंबर – दिसंबर 
पछेती खरीफ  अगस्त – सितंबर अक्टूबर – दिसंबर  फरवरी  – मार्च 
पहाड़ी क्षेत्र रबी  सितम्बर – अक्टूबर  अक्टूबर – नवम्बर  जून – जुलाई 
ग्रीष्म ऋतु (लंबे दिन का प्रकार) नवम्बर – दिसंबर  फरबरी – मार्च  अगस्त – अक्टूबर 

 प्याज की विभिन्न किस्में:-

राज्य  प्याज की किस्में 
कर्नाटक और तेलांगना  नासिक लाल प्याज (एन-53), रॉयल सेलेक्शन प्याज, जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), प्रेमा 178 प्याज
आंध्र प्रदेश  नासिक लाल प्याज (एन-53), जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), प्रेमा 178 प्याज, गुलमोहर प्याज
मध्य प्रदेश  नासिक लाल प्याज (एन-53), गुलमोहर प्याज, लक्ष्मी प्याज के बीज डायमंड सुपर, रॉयल सेलेक्शन प्याज
महाराष्ट्र  नासिक लाल प्याज (एन-53), गुलमोहर प्याज, जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), रॉयल सेलेक्शन प्याज, लक्ष्मी प्याज के बीज डायमंड सुपर
उत्तर प्रदेश  नासिक लाल प्याज (एन-53), रॉयल सेलेक्शन प्याज, जेएससी नासिक लाल प्याज (एन-53), प्रेमा 178 प्याज, गुलमोहर प्याज

 प्याज को उगाने के विभिन्न तरीके:-

प्याज को तीन प्रकार से उगाया जा सकता है:-  

  1. पहला नर्सरी में बीज की बुवाई कर मुख्य खेत में रोपाई करें। 
  2. दूसरा तरीका हरे प्याज के उत्पादन के लिए छोटी-छोटी कंदिकाएं को उगाना।  
  3. तीसरा और आखिरी प्रसारण अथवा सीधी बुवाई का तरीका। 

 

  1. नर्सरी प्रबंधन:

प्याज की रोपाई से पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है। बाद में उसको मुख्य खेत में रोपित किया जाता है। 

नर्सरी बेड: नर्सरी बेड तैयार करने के लिए ध्यान रखें कि 1  एकड़ क्षेत्र के लिए 200 वर्ग मीटर नर्सरी बेड की आवश्यकता होती है। इसकी आखिरी जुताई के दौरान 200 किलोग्राम गोबर की खाद  को 2 लीटर ट्राइकोडर्मा हरजेनियम  के साथ मिलाकर प्रयोग करें। इसका प्रयोग करने से पौधों में डैंपिंग ऑफ, जड़ सड़न, कॉलर सड़न और अन्य मृदा जनित रोग को नियंत्रण करने में सहयता मिलती है। बेड तैयार करते समय  1 – 1.2 मीटर चौड़ी, 10 – 15 सेमी ऊँची और सुविधाजनक ऊंचे बेड तैयार करें। क्यारियों के बीच 70 सेमी की दूरी बनाए रखें।

बीज दर:  1 एकड़ खेत के लिए 3 – 4 किलोग्राम  बीज की आवश्यक होती है।

बीज उपचार: बीजों की नर्सरी में बुवाई करने से पहले बाविस्टिन से उपचारित करें। इसके लिए 2 ग्राम बाविस्टिन को 1 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार करें फिर बाद में इस तैयार मिश्रण से प्याज के 1 किलोग्राम बीजों को उपचारित करें। इसके आलावा डैम्पिंग ऑफ और अन्य रोगों को नियंत्रित करने के लिए  जैव कवकनाशी में 1 किलो बीज के लिए 50 मिली पानी में 8-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिड मिलाकर उपयोग करें।

बुवाई:

  • बुवाई प्रक्रिया के लिए सबसे पहले बीजों की बुवाई कतार में करें। 
  • बीजों को 5 -7.5 सेमी की दूरी और 1 सेमी की गहराई पर नर्सरी में लगाएं। 
  • इसके बाद मृदा,चूर्णित गोबर की खाद और वर्मीकम्पोस्ट खाद से पूरी तरह बीजों को ढक दें। 
  • अब हल्की सिंचाई करें।
  • सिंचाई के लिए स्प्रिंकल या ड्रिप प्रणाली अपना सकते हैं।  
  • आवश्यक नमी और तापमान बनाए रखने के लिए नर्सरी बेड को धान और गन्ने के पुआल से ढक दें।
  • आर्द्रगलन रोग को रोकने के लिए नर्सरी बेड को कार्बेन्डाजिम 50% WP 0.5 – 0.75 ग्राम/लीटर पानी से भिगोएँ। 
  • यदि अंकुरों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो बुवाई के 10 दिन बाद 0.5 किग्रा प्रति बेड के हिसाब से 15:15:15 (NPK) का प्रयोग करें। 
  • अंकुरण होने के बाद गीली घास या पुआल को हटा दें।
  1. हरे प्याज के उत्पादन के लिए छोटी-छोटी कंदिकाएं उगाना:

  • हरी एवं गुच्छी प्याज को उगाने के लिए इस विधि का उपयोग किया जाता है। 
  • इसके रोपण के लिए पिछले सीज़न में उगाई गई ख़रीफ़ प्याज की किस्मों की छोटी छोटी प्याज की कंद को लें। 
  • अब मिट्टी के प्रकार के आधार पर ऊँची क्यारियाँ या समतल क्यारियाँ तैयार करें। 
  • 1 वर्ग मीटर क्यारी के लिए 15 ग्राम बीज की आवश्यकता होती हैं, यानी कुल नर्सरी क्षेत्र के लिए 3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
  • गुणवत्तायुक्त बल्ब प्राप्त करने के लिए उन्हें मध्य जनवरी-फरवरी के बीच में बोयें।
  • पौधों को अप्रैल से मई तक नर्सरी बेड में छोड़ दें जब तक कि उनका ऊपरी हिस्सा गिर न जाए।
  • शीर्षों और चयनित बल्बों की कटाई करें और भंडारित करें।
  • इस प्रकार इन भंडारित छोटे बल्बों द्वारा आप हरी प्याज की उगाई कर सकते हैं। 
  1. प्रसारण अथवा सीधी बुवाई:

बीज दर: सीधी बुवाई के लिए 8 – 10 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों की आवश्यकता होती है। 

बड़े प्याज लेने के लिए बीजों को 30 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोएं (पंक्ति – पंक्ति के बीच 30 सेमी की दूरी और पौधों – पौधों के बीच 30 सेमी की दूरी रखें)। बाद में, बल्ब के विकास के लिए उचित दूरी देने के लिए थिनिंग किया जा सकता है। छोटे प्याज लेने के लिए, बीजों को छोटी समतल क्यारियों में बुवाई करें। बीजों को 2.5 – 3 सेमी की गहराई पर लगाएं और बुवाई के 10 दिनों बाद हाथों से निराई – गुड़ाई करें एवं हल्की सिंचाई करें। 

बुवाई का उपयुक्त समय – सितंबर से अक्टूबर माह  

प्याज की खेती के लिए खेत तैयारी: 

  • खेत तैयारी के लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें। 
  • आखिरी जुताई के दौरान 10 टन गोबर की खाद डालें। 
  • पौध रोपण के लिए समतल एवं चौड़ी नाली बनाएं।  
  • प्रत्येक नाली 1.5 – 2 मीटर चौड़ी और 4 – 6 मीटर लम्बी होनी चाहिए।
  • अब प्रत्येक नालियों में क्यारियां बनाएं। 
  • प्रत्येक क्यारी 120 से. मी चौड़ी और 15 से. मी ऊँची होनी चाहिए। 
  • दो क्यारियों के बीच 45 से. मी की दूरी रखें। 
  • ध्यान रखें रोपाई से पहले क्यारियों की सिंचाई करें। 

नर्सरी से पौध की रोपाई:

खरीफ मौसम के लिए 6 – 7 सप्ताह और रबी मौसम के लिए 8 – 9 सप्ताह के भीतर नर्सरी में उगाए गए पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। रोपाई करते समय पंक्तियों के बीच 15 सेमी और पौधों के बीच 10 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।

उरवर्क मात्रा:

प्याज के लिए अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा 60:24:24 किलोग्राम/एकड़ है।

पोषक तत्व  उर्वरक  मात्रा  उपयोग का समय 
जैविक  FYM 10 टन / एकड़  आखिरी जुताई के समय 
नाईट्रोजन (N) यूरिया  65 किलोग्राम  बेसल 
65 किलोग्राम  टॉप ड्रेसिंग (प्रत्यारोपण के 20 – 25 दिन बाद)
फ़ास्फ़रोस (P) सिंगल सुपर फॉस्फेट  (SSP) 150 किलोग्राम  बेसल 
पोटेसियम (K) म्यूरेट ऑफ़ पोटाश  (MOP) 40 किलोग्राम  बेसल 
सूक्ष्म पोषक तत्व  अंशुल वेजीटेबल स्पेशल  छिड़काव: 2.5 ग्राम/लीटर पानी अंकुरण के 20-25 दिन बाद.

(20 दिनों के अंतराल पर कम से कम 3 छिड़काव करें)

 

 

सिंचाई प्रबंधन: 

  • अधिकांश प्याज सिंचित फसल के रूप में उगाई जाती हैं। 
  • जलवायु और मिट्टी की विशेषताएं इस बात को प्रभावित करती हैं कि कितनी बार सिंचाई का उपयोग किया जाता है।
  • रोपाई के समय खेत में सिंचाई करें। 
  • रोपाई के तीसरे दिन दूसरी सिंचाई करें।
  • इसके बाद, आपकी मिट्टी कितनी गीली है, इसके आधार पर अपने पौधों को हर 10 से 15 दिनों में पानी दें। 
  • फसल काटने से दस दिन पहले खेत की सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 
  • प्याज की वृद्धि और विकास को या तो अधिक पानी देने या कम पानी देने से नुकसान हो सकता है, इसलिए ऐसा करने से बचें।
  •  ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली का उपयोग करना भी संभव है।

खरपतवार प्रबंधन:-  

खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए रोपाई के 45 दिन बाद ऑक्सीफ्लोरफेन्स 23.5% EC 200 मिली/एकड़ की दर से डालें और इसके बाद एक हाथ से निराई करें।

फसल चक्र और मिश्रित फसल:-

गन्ना बोने के बाद शुरुआती 5 महीनों के दौरान प्याज को गन्ने के साथ अंतरफसल के रूप में उगाया जा सकता है। इन्हें फलियां, मक्का, ब्रैसिका और सोलेनैसियस फसलों के साथ भी उगाया जा सकता है। प्याज पोषक तत्वों का अधिक मात्रा में अवशोषण करती हैं, जिससे अगली फसल के लिए मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।  फलियां वाली फसलों के साथ प्याज को उगाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की पूर्ति होती है। इसी तरह, प्याज के साथ ब्रैसिका और सोलानेसियस फसलों की खेती भी कर सकते हैं। इससे  मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने एवं कीटों और रोगों काआसानी से नियंत्रण भी कर सकते हैं। 

प्याज की फसल में लगने वाले कीट एवं प्रबंधन:-

कीट  लक्षण  निवारक उपाय 
थ्रिप्स / तेला 
  • थ्रिप्स से प्रभावित पत्तियां मुड़ जाती हैं।
  • पत्तियों पर चांदी जैसे धब्बे दिखाई देते हैं।
  • विकृत पत्तियाँ तथा पौधों का मुरझाना तथा सूखना।
हेड बोरर 
  • यह कीट फूल के डंठल को खुरेदकर खाते हैं। 
  • यह कीट प्याज के बल्ब में प्रवेश कर छेद कर देते हैं, जिससे   बल्ब के शीर्ष के पास छोटे, गोल छेद दिखाई देते हैं। 
  • इस कीट का लार्वा प्रवेश छिद्रों के पास मलमूत्र की छोटी-छोटी गोलियां छोड़ जाते हैं।
  • फ़नल ट्रैप के साथ प्रति एकड़ 6 तपस हेलिक-ओ-ल्यूर का उपयोग करें।
  • 0.5 – 1 मिली सन बायो हैनपवी को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • एकलक्स कीटनाशक 2 मि.ली./लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • सिग्ना कीटनाशक 1.5 – 2 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
प्याज का मक्खी कीट 
  • कीट प्याज के बल्ब में सुरंग बनाकर उसके गूदे को खा जाते हैं, जिससे बल्ब को नुकसान पहुंचता है।
  • यह पौधों की जड़ों को खाते हैं, जिससे पौधों का  विकास रुक जाता है।
  • प्रभावित पौधे पीले पड़ जाते हैं और बाद में मुरझा जाते हैं।
कटवर्म
  • इसके युवा लार्वा कोमल पत्तियों को खाते हैं जिससे वे मुरझा जाते हैं, पीले या भूरे हो जाते हैं।
  • बाद में, जैसे-जैसे यह कीट बड़े होते हैं छोटे प्याज के पौधों को तने के आधार से काट देते हैं और पीछे कटे हुए किनारे या छेद छोड़ देते हैं, जिससे पौधे पूर्ण रूप से मुरझाकर मर जाते हैं।
एरीओफाइड मकड़ी / पित्त कण
  • यह कीट पत्तियों की परतों के बीच की नई पत्तियों को खाते हैं एवं गॉल बना देते हैं। 
  • पत्तियाँ किनारों पर पीली धब्बेदार हो जाती हैं।
  • संक्रमित पौधों की पत्तियाँ मुड़ जाती हैं और पूरी तरह से नहीं खुल पाती हैं। 
लाल मकड़ी / रेड स्पाइडर माईट 
  • इसके निम्फ और वयस्क पत्तियों की निचली सतह को खाते हैं, जिससे पत्तियों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। 
  • पत्तियों पर जाल बन जाते हैं। 
  • गंभीर मामलों में प्रभावित पत्तियों पर पीले या कांस्य के रंग के धब्बे विकसित हो जाते हैं। 

 

प्याज की फसल में लगने वाले विभिन्न रोग:-

रोग  लक्षण  निवारक उपाय 
डैम्पिंग ऑफ / आर्द्र गलन रोग
  • तनों का मुरझाना और गिरना।
  • संक्रमित पौधों के तने भूरे या काले हो जाते हैं। 
  • जड़ों में सड़न पैदा जाती है। 
  • संक्रमित पौधे सूखे हुए दिखाई दे सकते हैं।
बेसल रॉट / बेसल सड़ांध
  • प्याज के पौधे के आधार पर मुलायम, गूदेदार सड़ांध, पैदा हो जाती है,  जिससे पौधा सड़ कर गिर जाता है।
  • पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं और बाद में सूख जाती हैं।
कोमल फफूंदी
  • पत्तियों की निचली सतह पर भूरे फफूंद जैसे धब्बों का विकास हो जाता है, जिससे पत्तियां मुड़ जाती हैं।
  • संक्रमित पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ना शुरू हो जाती हैं और अंततः भूरी होकर सूखी जाती हैं। 
स्टेमफाइलम ब्लाईट / तना झुसला रोग 
  • प्रभावित पत्तियों के मध्य में छोटी-छोटी पीली से नारंगी रंग की धारियाँ बन जाती हैं। 
  • बाद में, पानी से लथपथ धारियाँ बड़ी हो जाती हैं और आपस में जुड़ जाती हैं, जिससे गुलाबी रंग के किनारे वाले अनियमित या स्पिंडल आकार के धब्बे विकिसित हो जाते हैं।
जीवाणुयुक्त भूरा सड़न/ जीवाणु बिल्ट 
  • बल्बों की गर्दन पर भूरे, पानी से लथपथ धारियाँ/धब्बे दिखाई देते हैं।
  • संक्रमित ऊतक मुलायम और चिपचिपे हो जाते हैं, साथ ही दुर्गंध भी आने लगती है।
स्मट रोग 
  • ·प्रभावित पत्तियों के आधार एवं सतह पर काले, पाउडरनुमा   बीजाणु के धब्बे दिखाई देते हैं।
  • प्रभावित पत्तियां नीचे की ओर झुक जाती है।
सफ़ेद सड़न 
  • पत्तियों की नोक पीली एवं मुरझा जाती है।
  • क्षयकारी शल्कों और बल्ब के आधार पर सफेद, रुईदार फफूंद का विकास हो जाता है। 
  • बल्ब पूरी तरह सड़ जाते हैं।
प्याज का बैंगनी धब्बा रोग 
  • प्रभावित पत्तियों पर छोटे, अनियमित बैंगनी धब्बे विकसित हो जाते हैं। 
  • बाद में यह धब्बे आकार में बड़े हो जाते हैं और आपस में मिलकर एक बड़े धब्बे का निर्माण हो जाता है। 
  • धब्बों का मध्य भाग बैंगनी रंग की सीमा से घिरा हुआ होता  है।
एन्थ्रेक्नोज़ इससे प्रभावित पत्तियां मुड़ जाती हैं और पत्ती के ब्लेड पर पानी से लथपथ हल्के-पीले धब्बे विकसित हो जाते हैं। 
  • धानुका एम45 को 3-4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
नैक सड़न
  • संक्रमित प्याज की गर्दन नरम और पानीदार हो जाती है, जिससे प्याज गिर सकता है।
  • संक्रमित गर्दन भूरी या काली हो सकती है।
  • संक्रमित प्याज से दुर्गंध आती है
  • संक्रमित प्याज की गर्दन छूने पर स्पंजी हो सकती है।

 

  • भंडारण से पहले उचित सुखाने को सुनिश्चित करें।
  • कटाई से पहले कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करें।
येलो ड्वार्फ़ विषाणु
  • ·प्रभावित पत्तियों के आधार पर पीली धारियाँ विकसित हो जाती है। 
  • पत्तियाँ सिरे से शुरू होकर आधार की ओर बढ़ते हुए पीली हो जाती हैं।
  • प्रभावित पत्तियाँ झुर्रीदार और चपटी दिखाई देती हैं। 

 

  • वायरस मुक्त पौधों का प्रयोग करें।
  • रोगवाहक को नियंत्रित करने के लिए पुलिस कीटनाशक का 0.2 – 0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आयरिश पीला धब्बा वायरस
  • पत्तियों पर पीले या भूरे रंग की सीमाओं के साथ सूखे, भूसे के रंग के, भूरे, धुरी के आकार के घावों विकसित हो जाते हैं।
  • इन घावों में हरे केंद्र की उपस्तिथि हो भी सकती एवं नहीं भी हो सकती है। 
  • हर 3 साल में फसल चक्र को अपनाएँ।
  • खर-पतवारों को हटाएं। 
  • टेरा विरोकिल को 3 मिली/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

(टिप्पड़ी: आवेदन का सही समय जानने के लिए आवेदन से पहले उत्पाद के लेबल की पूरी जांच करें।)

फसल कटाई:-

  • फसल की कटाई का समय इस बात पर निर्भर करता है कि फसल को किस उद्देश्य से उगाया गया है। 
  • सूखे प्याज के लिए, कटाई 5 महीने में की जा सकती है, जबकि हरे प्याज के लिए, कटाई के बाद 3 महीने में कटाई की जा सकती है। 
  • रबी मौसम में प्याज की कटाई तब की जाती जब उसका गर्दन/शीर्ष भाग 50% गिरने लगता है। 
  • बल्बों की कटाई हमेशा हाथों से उखाड़कर की जाती है। 
  • ख़रीफ़ मौसम में फसल का शीर्ष भाग नहीं गिरता है बल्कि फसल की पत्तियों का रंग बल्बों तक हल्के पीले और लाल रंग में बदल जाता है। 
  • ग्रीष्म समय में जब मिट्टी सख्त होती है, बल्बों को निकालने के लिए हाथ से कुदाल का उपयोग करें। फसल पर कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव करें, जिससे कटाई के बाद कटे हुए प्याज को किसी भी प्रकार के फंगल संक्रमण से बचाने में मदद मिलेगी।

सुखाना:-

  • कटाई के बाद, प्याज की शेल्फ लाइफ को बढ़ाने, प्याज के रंग के उचित विकास के लिए और भंडारण से पहले खेत की गर्मी को दूर करने के लिए प्याज को ठीक करने की आवश्यकता होती है। 
  • इसके लिए, प्याज के कंदों को अन्य कंदों की पत्तियों से ढककर छोटे-छोटे ढेर में सूर्य के सीधे संपर्क में आए बिना खेत में फैला दें।
  • प्याज को 3-5 दिनों तक सूखने दें, जब तक कि पत्तियां और तना पूरी तरह से सूख न जाए। 
  • पूरी तरह सूखने के बाद, पत्तियों को बल्ब के ऊपरी भाग से लगभग 2 – 2.5 सेमी की दूरी से  काट लें।

भण्डारण:-

कटाई और पूरी तरह से सूखने के बाद प्याज को ठंडी और सूखी जगह पर भंडारित करें। फफूंदी और सड़न से बचाने के लिए उन्हें अच्छी तरह हवादार क्षेत्र में भंडारित करें। अगर प्याज को सही तरीके से उपचारित और संग्रहित किया जाए तो इसे कई महीनों तक संग्रहीत किया जा सकता है।

उपज:-

8 – 10 टन / एकड़। 

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