HomeCropहल्दी की खेती के लिए खेत की तैयारी

हल्दी की खेती के लिए खेत की तैयारी

देश ने वर्ष 2020-21 में कुल उत्पादन में से 11.02 लाख टन हल्दी का निर्यात किया था। भारत में उगाई जाने वाली हल्दी में कुकुर्मिन की मात्रा अधिक पाई जाती है, इसी कारण बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती हैl आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार, कुकुर्मिन में प्राकृतिक कैंसर-निरोधक गुण पाये जाते हैंl वेबमेड के अनुसार हल्दी का इस्तेमाल गठिया बाई, अपच, पेट दर्द, दस्त, आंतों की गैस, पेट फूलना, पीलिया, यकृत और पित्ताशय की थैली आदि रोगों के निवारण के लिए किया जाता है।

कठिनाई स्तर:

कठिन

बीजों का चयन:      

बाजार में हल्दी की अनेक किस्में उपलब्ध हैं। उनमें से कुछ प्रमुख लोकप्रिय किस्में है, अमृतपानी, अरमूर, दुग्गीराला, टेकुरपेटा, पट्टांट, देशी, मूवाट्टुपुझा, वायनाड, राजापुर, करहदी, वेगोन, चिन्नादन, पेरियानाडा, सीओ 1, बीएसआर 1, रोमा, स्वर्णा, सुदर्शना, सुगुना, सुगंधम, बीएसआर 2 , रंगा, रश्मी, राजेंद्र सोनिया, कृष्णा, सुरोमा, एलेपी फिंगर हल्दी (एएफटी), आईआईएसआर प्रभा, आईआईएसआर प्रतिभा, आईआईएसआर एलेप्पी सुप्रीम और आईआईएसआर केदारम आदि।

हल्दी के बीजों का उपचार:

हल्दी का प्रवर्धन प्रमुख रूप से प्रकंद / राइजोम द्वारा किया जाता है। बुवाई के लिए प्रकंद को छोटे -छोटे भागों में काट कर डायमेथोएट 30% ईसी @ 2 मिली/लीटर या मोनोक्रोटोफॉस 36 डब्ल्यूएससी @ 1.5 मिली/लीटर और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3% @ 3 ग्राम/लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बीजों को उपचारित किया जाता है l उपचार के समय प्रकंद को 30 मिनट के लिए रसायन के घोल में डुबोकर रखा जाता है। इसके अलावा वैकल्पिक उपचार के विकल्प में प्रकंद को स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस @ 10 ग्राम/किग्रा और ट्राइकोडर्मा विरडी @ 4 ग्राम/किग्रा की दर से उपचारित भी कर सकते है। 

भूमि की तैयारी: 

हल्दी के लिए तैयार किये गए मुख्य खेत को चार जुताई की जरूरत होती है, जो  छेनी और डिस्क हल की मदद से कर सकते है, अंतिम दो जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए। बुवाई के लिए ऊँची उठी हुई 45 सेमी या 120 सेमी चौड़ी, 30 सेमी ऊँची क्यारियाँ तैयार की जाती है l ड्रिप सिंचाई के माध्यम से मिट्टी की नमी के स्तर के आधार पर क्यारियों को लगभग  8-12 घंटे तक गीला किया जाता है।

अंतिम जुताई के दौरान गोबर की खाद 25 टन, नीम या मूंगफली की खली – 200 किलो, नाइट्रोजन: फास्फोरस: पोटाश 25:60:108 किलो, फेरस सल्फेट 30 किलो और जिंक सल्फेट 15 किलो, एजोस्पिरिलम और फास्फो बैक्टीरिया 10 -10 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के समय दिया जाना चाहिए।

हल्दी की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी:

इसकी खेती के लिए भुरभुरी, उचित जल निकास वाली लाल दोमट मिट्टी में सबसे उपयुक्त मानी जाती है l हल्दी के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं जहां 1500 मिमी की वार्षिक वर्षा होती है, उन क्षेत्रों में इसे सर्वोत्तम तरीके से उगाया जा सकता है l

निष्कर्ष:

हल्दी की खेती करना कठिन है, इसके लिए बहुत अधिक देखभाल की जरूरत होती है। बाजार में हल्दी, एक उच्च मांग वाली फसल है, इसकी मांग हमेशा बनी रहती है l निर्यात की दृष्टि से भी हल्दी एक प्रमुख फसल है l हल्दी की शेल्फ लाइफ (निधानी आयु) लंबी होती है, इसलिए इसे लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है।

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